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सौतेला बाप ( भाग - 4)

अध्याय -४ 


वहीं दूसरी ओर पण्डित बाबा के घर ,जहां पण्डित बाबा गुस्से में तमतमाते आए और घर में दाखिल होते ही चापाकल के पानी से हाथ मुंह और पैर धोकर सीधे अपने पोथियों के पास पूजा घर में जाकर विराजमान हो गए साथ - साथ वो खुद में ही भुनभुना रहे थे -" हम भी देखते है शादी कैसे होता है बिना पण्डित के ,आज तक इतना अपमान किसी ने ना किया हमारा।सबको इसका दण्ड मिलेगा।"
कुछ देर वहीं रहने के बाद पण्डित बाबा जिनकी भौंहे अभी भी तनी हुई थी।क्रोध तथा व्यंग से मुंह चिढ़ाते हुए चिल्ला कर बोले -" आज कुछ नाश्ता मिलेगा कि अपने पति को भूखा मारने का विचार है पंडिताइन?" 

और वहां से सीधे बरामदे मे आकर विराजमान हो गए। पण्डित बाबा गांव के सबसे जाने माने पण्डित। जिनका इतना मान था कि अगर उन्होंने किसी के घर पूजा करने से मना कर दिया , तो गांव का कोई भी पण्डित उसके घर के सामने से ना जाए।अपनी आदत के अनुसार आज भी रोजाना की तरह वहीं बरामदे में बैठ गए ।पंडिताइन ने एक तश्तरी में दाल ,चावल ,पतली - पतली रोटियां और तरकारी भोजन के लिए उनके सामने रख दीं। पण्डित बाबा का मुंह अब भी चढ़ा हुआ था।गुस्से में रोटियां तोड़ते हुए वो एक - एक निवाला दांत पीस - पीस कर खा रहे थे ये सब देख पंडिताइन कुछ देर चुप रही।
एक - आधा मिनिट चुप रहने के बाद उनसे अब और चुप ना रहा गया तो वो पति के मुख को देख एक उड़ती नज़र इधर - उधर घुमा पर बोली -" का हुआ पण्डित जी! इतना काहे गुस्से में है।आप तो ऊ फुलवा का बियाह करवाने गए थे ना इतनी जल्दी आए गए?" 

" अरे मति मारी गई थी जो एक विधवा का जीवन सफ़ल करने निकल पड़े वहां तो हमारा ही अनादर हो रहा था।" वह सिर झटकते हुए बोले।उनकी बात सुन पंडिताइन की तो मानो दुनिया ही ऊपर नीचे हो गई ,तुनक सी गई वो और उत्तेजित होकर बोली -" कऊन किया ई सब?" 

पण्डित बाबा निवाला निगलते हुए बोले -" अरे ऊ नीची जाति का गबरुआ की वजह से सब हुआ और दुलहा की वजह से।" 

आश्चर्य चकित होती पंडिताइन पूछी -" दुलहा की बजह से?" 

पण्डित बाबा ने पूरी कहानी किसी कथा की तरह पंडिताइन को सुनाई जो बगल में बैठी पंखी हांक रही थी पण्डित बाबा को। 

पण्डित बाबा -" अरे! जो पुरखों ने हमे बतलाया वही तो सही होगा न , कि ऊ नए आए दूलहा की बातें।" 

पण्डित - पंडिताइन एक दूसरे से बतिया ही रहे थे कि तभी गबरू की मृदु स्वर आवाज़ उनके कानों में पड़ी -" आपकी बानी ही सही है माई बाप , हमी गलत किए।" 

पण्डित बाबा गबरुआ को सामने खड़े देख अपनी थाली को परे सरका कर उठ खड़े हुए और गबरुआ के सामने आ खड़े हुए मगर कुछ दूरी बनाकर। 

हाथ जोड़े गबरू रोता सा बोला -" हमको माफ़ करदो पण्डित बाबा ,जरूर पुराने जनम में कौनो पाप किए होंगे जो ई जनम में आपको रूष्ट कर दिए ,हमको छड़ी से मार लियो, गांव छोड़ चले जायेंगे मगर उस बियाह करवा दो ,बहुत अच्छा है दुलहा। ऊ जीनगी सवार देगा मधुआ बचूआ की और फुलवा बिटिया की।"

अब गबरू की आंखे झिलमिला गई थी।उसकी बात सुन पण्डित बाबा का दिल पसीजने लगा था , क्युकी गबरुआ को वो बचपन से देखे थे अपने बाबा के साथ गांव में मजदूरी करने आता था और बहुत ईमानदार और सच्चे दिल का इंसान था। वहीं पंडिताइन तो बस रोने ही वाली थी। 

" ऐसा ना बोलो गबरू ,तुम बुरे नाही हो।" पंडिताइन अपने आंचल से अश्रु धारा पोंछते हुए बोली।मगर गबरू इस वक्त अथाह दुख के समंदर में डूबा जा रहा था।
गबरू जल्दी से हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठ रोने लगा।और बस पण्डित बाबा भागे चले गबरू के पास और उसके सामने खड़े हुए बोले -" हमे माफ़ करदे गबरुआ! उस वक्त गुस्सा थे हम ,तनिक ज्यादा गुस्सा हो गए तोहरा पे।" 

यही तो दिल होता है निश्चल गांव वालों का एक सच्चे आंसू से दिल पसीज आता है।अब पण्डित बाबा को अपनी गलती का एहसास हो रहा था। 

जारी है.....

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9 Comments

RISHITA

06-Aug-2023 10:04 AM

Nice part

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Gunjan Kamal

16-Nov-2022 08:12 AM

Nice

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